प्रभु की चाह
अपनी शरण में लीजे नाथ,
मोहे अपनी शरण गह लीजे।
जन्म-जन्म से दर्श की प्यासी,
इच्छा पूरण कर दीजे नाथ मोहे..
हुई बाबरी वन-वन भटकी,
तेरी सुरतिया मन में अटकी,
ढूँढ़ रही हूँ नाथ डगरिया,
एक इशारा कर दीजे नाथ मोहे..
जल बिन मछली तड़प रही हूँ,
स्वाति नक्षत्र में तरस रही हूँ,
सागर में रहकर भी प्यासी,
प्रभु वेग खबरिया लीजे नाथ मोहे..
मृग सुरभि की खोज में भटके,
प्रभू मूरत नाभि में दमके,
खोल के चक्षु अंतरमन के,
कंत भ्रमित मत कीजे नाथ मोहे..
भव सागर में डग-मग नैया,
पार लगा दो कृष्ण-कन्हैया,
फंदा कसती जाए माया,
“श्री” जग बंधन हर लीजे नाथ मोहे…
स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
Mohammed urooj khan
10-Apr-2024 01:01 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Gunjan Kamal
08-Apr-2024 10:56 PM
शानदार
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Tabassum
22-Mar-2024 11:51 PM
👍👍
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